
अजन्मी बेटी की माँ की पुकार्/Azanmi Beti Ki Maa Ko Pukar
अजन्मी बेटी की माँ को पुकार्/Azanmi Beti Ki Maa Ko Pukar
दोस्तों बेटी होना अपने आप में ही एक अपराध है. आज भी इस माहौल में बेटी को जनम लेने से रोका जाता है. एक स्त्री एक माँ खुद अपनी बेटी के पैदा होने में रुकावट बनती है. वो ये नहीं जानती किअगर बेटी नहीं होगी तो बहु कहाँ से आएगी.
और वो खुद भी तो एक बेटी है. बेटी तो हमेशा आपका सुख-दुःख में साथ देती है. मेरा आपसे ये ही निवेदन है किबेटी को आने से मत रोकें. और जहाँ भी आपको ऐसा होता दिखे तो आप तुरंत उसका विरोध करें.
अब तो कानून भी इस बारे में सख्त नियम बना चूका है. तो आइये अपने ही घर से पहल करें बेटी के आने का स्वागत करें. दिल से बेटी को अपने घर में जगह दें. आज में एक अजन्मी बेटी की अपनी माँ से पुकार को शब्दों में पिरोकर लायी हूँ.
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप इस कविता को आगे भी दोस्तों को शेयर करेंगे . हो सकता है ये किसी के दिल को छूले और एक बेटी को संसार में आने में सहायक बने.
मां, मेरी धङकन सुन पाती हो
ऐ मां -बाबा, सुनलो मेरी पुकार
क्युं छीनते हो मुझसे, ये जीवन का उपहार,
मां, तुम तो ममता की मूरत कहलाती हो,
फिर क्यूं नहीं बाबा को समझाती हो.
मैं खून हूं तुम्हारा, फिर क्यूं नहीं,
तुम दोनों तो बनो मेरे रखवाले,
क्युं करते हो मुझे मौत के हवाले,
मैं खून हूं तुम्हारा, फिर क्यूं नहीं,
मां, मेरी धङकन सुन पाती हो.
खुशियां भर दूंगी जीवन में आपके
करती हूं वादा मैं मां- बाबा आपसे,
पढूंगी लिखूंगी, नाम आपका रोशन करूंगी,
खुशियां भर दूंगी जीवन में आपके,
कभी भी ना निराश आपको करूंगी.
नियामत हूं मैं खुदा की
मैं भी चाहती हूं मां-बाबा जीना,
भैया की तरह पूरे नौ महीना,
नियामत हूं मैं खुदा की,
अपना समझ कर अपना लो मुझे.
जो मांगी खुदा से मां तू वो मन्नत है
बनूंगी सहेली तेरी मैं मां पक्की,
बताना दिल की हर बात मुझे,
जो मांगी खुदा से मां तू वो मन्नत है,
गोदी मे तेरे, मेरी प्यार की जन्नत है.
ये तन मेरा, ये मन मेरा, सब तेरा है,
मां, तुम भी तो किसी की बेटी हो,
फिर क्यों मेरे लिये मुंह लटकाये लेटी हो,
ये तन मेरा, ये मन मेरा, सब तेरा है,
तेरे पहलू में खुशियों का सवेरा है.
लो मॉं, बचा लो, बाबा तो ले भी आये गाङी
क्या कर दोगी मुझे अपनी बाहों से मरहूम,
जल्दी लो निर्णय मेरे दिल मे मच रही है धूम्,
लो मॉं, बचा लो, बाबा तो ले भी आये गाङी,
डॉक्टर के पास जाने की हो गयी पूरी तैयारी.
मुझे तुमसे, तुम्हें मुझसे, मिलने की
क्या नहीं पहन पाऊंगी मैं तुम्हारी तरह साङी,
हॉ, मॉ अब मैं समझी तुम्हारी मजबूरी,
दहेज लोभियों के डर से हो तुम डरी,
मुझे तुमसे, तुम्हें मुझसे, मिलने की
तमन्ना प्यारी मॉ, रहेगी हमेशा, अधूरी,
अधूरी, अधूरी,अधूरी.
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4 comments
बहुत खूबसूरत कविता जो एक शांत झील में कंकड़ मरने सद्रश है…साधुवाद आपको..आशा करता हूँ, कि आपकी और रचनाओं को पढूंगा..
विनम्रता सहित..
जी धन्यवाद आपका.
बहुत सुंदर बहुत सुंदर बहुत सुंदर।
@दयाचंद जैन
धन्यवाद आपका.