
सफर है सफर, मिलन का सफर

इक सफर है ये जिन्दगी
इसमें हैं-
हमसफर भी
मुसाफिर भी
कारवां भी है यहाँ
और मुकाम भी,
सफर वो भी क्या जो ,
कदम उठायें और मंजिल आ जाये ,
मज़ा तो तब है जब पैरों को कुछ थकान मिले ,
इसी सफर में दो-स्नेह शब्द मिल जाएँ तो ,
नव-स्फूर्ति मिले और दूर थकान हुई,
हर पथ पर जो भी साथी मिला, स्नेह मिला,
उस-उस राही को शुक्रिया मेरा,
कोई धीमे चले और कोई रफ्तार से,
मंजिल अपनी पानी सबको है जरुरी,
अलग-अलग विचार मिले तो बात बन जाये,
अलग-अलग संस्कृति से दिल मिल जाएँ,
आओ चलें हम मिलकर इक नए सफर पर,
जहाँ चार यार मिलें और सफर कट जाए.
The Post is written in line with this week’s
2 comments
Ji. Samay bhi and samay ke saath nyaya bhi… this is what transforms travel into poetry. 🙂
ji shukriya.