सदियों से ये एक खेल चला आ रहा है,
रस्सा -कस्सी तबसे सबको लुभा रहा है ,
जिसमे होती है दो टीमों में खींचा – तानी,
इसमे हो भी जाती लडाई उनमे जुबानी ,
और आज ये ही खेल रिशतों का हो रहा है,
15 दिन पहलें वैलेंटाइन -डे था,
बेटे ने समझाया कि जिसको भी करो प्यार,
वो ही होता आपका वैलेंटाइन, वही लाता प्यार की बहार ,
तो माँ मेरी वैलेंटाइन तो बस आप हँ,
करता हूँ बस मै आपसे ही प्यार बेशुमार,
आपका है मेरी हर चीज़ पर अधिकार,
सुन कर इतना दिल में बज उठी झंकार,
अपनी ही नज़र उतारने को दिल था बेकरार,
एक झटके में याद आया वो बीता दिन,
पति देव जी ने हिम्मत करके था पुकारा,
अरे कहाँ हो हमारे दिल की वैलेंटाइन ,
समझ गई मै कि जरूर घर से है समाचार,
तभी तो हम पर प्यार लुटा रहे हँ सरकार,
वे बोले माँ-बाबा ने घर में बुलाया है,
khel rishton ka jaise ho rassa-kassi
तुम दो आदेश तो हम साथ चलते हँ,
भन्ना उठी मै, गुस्से में , आक्रोश में,
क्या कह रहे हो? , हो तुम होश में,
हमारे अपने भी तो कुछ सपने हँ,
या कह दो वो ही तुम्हारे अपने हँ,
पर आज तो दिल ने मुझे धिक्कारा था,
मेरी अपनी सफाई का रहा कहाँ चारा था,
अनायास मेरे हाथ फ़ोन पर जा रहे थे,
और वो तो ससुराल की घंटी बजा रहे थे,
मेरे कानों को मेरी ही आवाज़ आ रही थी,
जो माँ-बाबा को घर आने की सुना रही थी
आज दिल को मेरे मिला सुकून था,
मेरा अपना बेटा ही मुझे सिखा रहा था,
पति के लिए आँखों में मेरी जूनून था,
अब तो पतिदेव पर प्यार मुझे आ रहा था,
काश हम रिश्तों का महत्व पहले समझ पाते,
माँ की ममता का बेटे से प्यार समझ पाते.
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