Today’s women struggle not for equality but for respect
मैं हूँ नारी आज की,
न हूँ मैं अबला, ना लाचार हूँ,
पैरों पर अपनी खड़ी हूँ,
कमजोर भी मैं नहीं हूँ,
नहीं चाहिए मुझे इक दिन की पहचान,
मुझसे है मेरी पहचान,
परम्पराएँ मेरी खुद की हैं,
मुझे पता है कर्म, धर्म मेरे,
लक्ष्मण रेखा भी मैं ही अपनी बनाऊँ,
पति मेरा परमेश्वर नहीं है,
मेरा दोस्त, मेरा हमसफर है वो,
मुझे नहीं चाहिए बराबरी पुरुष की,
मुझे चाहिए मेरा सम्मान,
मैं हूँ नारी आज की,
मुझे खुद पर गर्व है.
2 comments
Nice poem.
Good one!